
गाजियाबाद। 05 सितंबर 2025
कलेक्ट्रेट स्थित महात्मा गांधी सभागार में गुरुवार को उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त उ0प्र0 वीरेन्द्र सिंह वत्स की अध्यक्षता में सूचना का अधिकार अधिनियम से जुड़े लंबित मामलों की समीक्षा बैठक आयोजित हुई। बैठक की शुरुआत में मुख्य विकास अधिकारी अभिनव गोपाल ने पुष्पगुच्छ भेंट कर श्री सिंह का स्वागत किया। इसके बाद जिला प्रशासन की ओर से सभी अतिथियों का गर्मजोशी से अभिनंदन किया गया। बैठक में वीरेन्द्र सिंह वत्स ने अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि सूचना का अधिकार केवल एक कानून नहीं बल्कि सुशासन, पारदर्शिता और नागरिक सशक्तिकरण का क्रांतिकारी कदम है। इसका उद्देश्य भ्रष्टाचार पर लगाम कसना, प्रशासनिक जवाबदेही तय करना और जनसहभागिता बढ़ाना है। उन्होंने अधिकारियों को चेताया कि तय समयसीमा के भीतर सही और सटीक सूचना देना केवल औपचारिकता नहीं बल्कि उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी है।
अपने संबोधन में अधिकारियों से कहा कि समय की आहट सुनिए और जिस भूमिका के लिए आप चुने गए हैं, उसे तन-मन से निष्ठापूर्वक निभाइए। जन सूचना को अपनी ड्यूटी में शामिल कीजिए। आज यदि आप नागरिकों को न्यायसंगत सूचना नहीं देंगे तो कल आप भी इसी व्यवस्था के शिकार हो सकते हैं। उन्होंने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए कई प्रभावशाली उदाहरण साझा किए। मत्स्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी की चिकित्सा प्रतिपूर्ति वर्षों तक फंसी रही। बीमारी से जर्जर वह अधिकारी तीन साल तक विभाग और अस्पताल के चक्कर लगाते रहे, लेकिन समाधान नहीं हुआ। आखिरकार जब मामला सूचना आयोग पहुँचा तो आयोग ने विभाग और अस्पताल दोनों को नोटिस भेजकर बुलाया। परिणाम यह हुआ कि महीनों से अटकी हुई प्रतिपूर्ति का चेक अगले ही महीने जारी हो गया। इसी तरह एक अधिकारी की सेवा पुस्तिका ही गायब हो गई थी। चार सुनवाई और कई चेतावनियों के बाद आखिरकार उनकी नई सेवा पुस्तिका तैयार कर दी गई।
वत्स जी ने कहा कि ये उदाहरण बताते हैं कि सूचना आयोग केवल दंड देने का मंच नहीं है बल्कि आम नागरिकों को राहत दिलाने का एक सशक्त माध्यम भी है। ऐसे अनेक मामले हैं जहाँ हताश और निराश नागरिकों को आयोग ने तुरंत राहत दिलाई है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आयोग तक पहुँचने वाले अधिकतर मामले ऐसे होते हैं जिनका निपटारा प्रथम अपीलीय अधिकारी के स्तर पर ही किया जा सकता था। यदि अधिकारी सजगता और जिम्मेदारी से काम करें तो आयोग पर बोझ भी कम होगा और सुनवाई की गुणवत्ता भी बढ़ेगी। राज्य सूचना आयुक्त ने अधिकारियों को चेतावनी देते हुए कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम का उल्लंघन किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
अधिनियम की धारा 20 (1) के तहत गलत, अधूरी या भ्रामक सूचना देने वाले अधिकारी पर 25 हजार रुपये तक का अर्थदंड लगाया जा सकता है और धारा 20 (2) के तहत विभागीय कार्रवाई की संस्तुति की जा सकती है। उन्होंने कहा कि कोई भी अधिकारी अपने करियर को दागदार करने का जोखिम क्यों उठाएगा? इसलिए यह जरूरी है कि आप सभी समयबद्ध तरीके से सटीक और सही सूचना उपलब्ध कराएँ। बैठक में जन सूचना अधिकारियों को यह भी विस्तार से समझाया गया कि किस तरह की सूचनाएँ दी जा सकती हैं और किनसे छूट है। केवल वही सूचना दी जाएगी जो लोक प्राधिकरण के पास पहले से मौजूद या उसके नियंत्रण में हो। सूचना अधिकारी से यह अपेक्षित नहीं है कि वह नई सूचना तैयार करे या काल्पनिक प्रश्नों का उत्तर दे। राष्ट्र की सुरक्षा, संप्रभुता और तृतीय पक्ष की निजी जानकारी जैसी संवेदनशील सूचनाएँ आरटीआई के तहत साझा नहीं की जा सकतीं। वहीं 500 शब्दों से अधिक के आवेदन को विस्तृत मानकर निरस्त भी किया जा सकता है।
श्री सिंह ने यह भी कहा कि जन सूचना अधिकारी का कर्तव्य है कि वह सूचना मांगने वाले प्रत्येक आवेदक को युक्तिसंगत सहायता प्रदान करे। यदि कोई व्यक्ति लिखित आवेदन देने में असमर्थ है तो अधिकारी स्वयं उसकी मदद करे। दिव्यांगजनों के लिए विशेष सहयोग सुनिश्चित किया जाए। साथ ही यह भी जरूरी है कि धारा 4 के तहत लोक प्राधिकरण अपने संगठन, गतिविधियों और कार्यप्रणाली से जुड़ी सूचनाओं का स्वत: प्रकटीकरण करे और उन्हें इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध कराए। ऐसा करने से आरटीआई आवेदनों की संख्या कम होगी और नागरिकों को समय पर आवश्यक जानकारी मिल सकेगी। बैठक में जिले के तमाम वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी ने कार्यक्रम की महत्ता को और बढ़ा दिया।
इस अवसर पर आरटीआई विशेषज्ञ अधिवक्ता श्री शैलेन्द्र सिंह चौहान, निजी सचिव श्री शरफुज्जमां, मुख्य विकास अधिकारी अभिनव गोपाल, एडीएम-ई/ रणविजय सिंह, एडीएम एल/ए विवेक मिश्र, एडीएम एफ/आर सौरभ भट्ट, आईएएस अधिकारी दीपक सिंघनवाल, अयान जैन, सीएमओ डॉ. अखिलेश मोहन, नगर निगम से अपर नगर आयुक्त जंग बहादुर यादव तथा पुलिस विभाग से डीसीपी ग्रामीण सुरेन्द्र नाथ तिवारी, एडीसीपी प्रोटोकॉल आनन्द कुमार, डीसीपी ट्रांस हिण्डन निमिष पाटिल और एडीसीपी ट्रैफिक सच्चिदानन्द समेत जिले के सभी विभागों के अधिकारी और जन सूचना अधिकारी उपस्थित रहे। बैठक के अंत में सभी अतिथियों को मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया। राज्य सूचना आयुक्त के प्रेरक संबोधन और कठोर चेतावनी ने न केवल उपस्थित अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारियों का बोध कराया बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि आरटीआई केवल एक कानून नहीं बल्कि सुशासन की रीढ़ है। गाजियाबाद की यह बैठक आने वाले समय में प्रशासनिक पारदर्शिता और नागरिक सशक्तीकरण की दिशा में एक मजबूत कदम साबित होगी।