
जौनपुर — हमारा देश केवल भौगोलिक क्षेत्रफल की एक इकाई जाना जाने वाला एक देश नहीं है, विश्व में नैतिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक गौरव की जो मूल निष्ठाएं हैं उसे पुष्पित और पल्लवित करने वाला यह देश है।यहां एक ऐसी संस्कृति विकसित हुई है जो मानवीय उत्कृष्टता के समस्त गुणों को अपने में समेटे हुए मानव से माधव बनाने का कार्य करती रही।यहां पर जन -जन की ऐसी सोच है जहां विश्व कल्याण की भावना सदा बलवती होती रहती है।स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि ‘हमारे देश की धरती से योग की, तप की, ज्ञान की, ज्ञान की, दर्शन की इतनी दिव्य धाराएं बही हैं कि किसी भी एक धारा का सहारा लेकर के हम संपूर्ण वसुधा का कल्याण कर सकते हैं बशर्ते की हमारे अंदर उस धारा के अवगाहन करने की पात्रता भीतर से विकसित हो जाए। आज ऐसी ही पात्रता की आवश्यकता है जो@ विकसित भारत 2047, के लक्ष्य को प्राप्त कराये और निर्माण करे एक सांस्कृतिक गौरवशाली भारत का जिस भारत को विश्व में अतीत से जाना जाता रहा है। इसी भारत के नवनिर्माण की हेतु नागरिकों की पात्रता का अभिवर्धन करने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज से 100 वर्ष पूर्व योजना बना लिया था,और सोच लिया था कि इस देश के प्रति हमें क्या करना है।उसी पावन उद्देश्य से सदानीरा सलिला की भांति अनवरत बहते हुए आज अपना संघ शताब्दी वर्ष मना रहा है।
संघ शताब्दी वर्ष में हमें इतना जरुर सोचना है कि भारत में शिक्षा, कृषि,आदिवासी,पर्यावरण, समाज, वंचित,शोषित, महिला आदि के कल्याण और सशक्तिकरण हेतु क्या क्या किया जाना है। इस भाव को लेकर 100 वर्ष पूर्व जो यात्रा प्रारंभ की गई थी वह यात्रा अब अपनी पूर्ण गति शीलता पर है अब उसमें जो वेग है वह वेग इतना गतिमान है कि आज दुनिया में इस पर चर्चा हो रही है और इसके कृत्य और पद्धति को अपनाने की बात की जा रही है।
‘हम से वयम’ यानी व्यक्ति से समिष्टि की यात्रा संघ हमें कराता है। राष्ट्र सेवा के संकल्प की प्रति समर्पित भाव हमें संघ की शाखाओं से मिलता है।संघ की शाखाएं मात्र एक स्थल ही नहीं है बल्कि नवनिर्माण करने की आधारभूत रचनाकल्प हैं जहां व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक खुराक की पूर्ण व्यवस्था होती है। आज अगर आपदा, विपदा, उत्सव और उपकार के जितने कृत्य देश मे हो रहे हैं,उन सबमें सेवा-समर्पण की जहां आवश्यकता होती है तो वहां सेना के बाद कोई भी संगठन कार्य करता है तो वह केवल संघ ही है।
संघ ‘सामूहिक मन’ का निर्माण करता है और राष्ट्र निर्माण हेतु मन को बदलता भी है,कारण यह है कि हमारा व्यक्तिवादी मन सदा उछल-कूद करता रहता है जब वह समूह से जुड़ जाता है तो उसके अंदर समूह के प्रति उत्तरदायित्व का भाव आ जाता है और यही उसका उत्तरदायित्व का भाव उसे उत्तम नागरिक व विराट मानसिकता वाले राष्ट्र के निर्माण में उसके योगदान को सँजोता है।
संघ में जाति तलाशने के उद्देश्य से जाने वाले गांधी जी को जब पता चला कि यहां कोई भी स्वयंसेवक किसी भी स्वयंसेवक की जाति नहीं जानता,न कोई बड़ा है और न कोई छोटा,सबमें भातृप्रेम आधारित सेवाभाव है तब उन्होंने इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की,यह अवसर भी गजब है कि उन्हीं के जन्मदिन से शताब्दी वर्ष के रूप में संघ अपनी महती भूमिका का अवगाहन करने के लिए पंच निष्ठाएँ के रूप में अपना शत वर्षीय समारोह प्रारंभ कर रहा है।
संघ अपने शताब्दी वर्ष में ‘पंच परिवर्तन,के आधार पर विकसित भारत 2047 की संकल्पना को साकार करने में लगा है,जहां पहले परिवार को बचाना ही नहीं बल्कि पूरे समाज में अपनी प्राचीन कुटुंब प्रबोधन भाव को विकसित करना है।पर्यावरण संरक्षण जो विश्व की सबसे बड़ी आवश्यकता है उसे समावेशी और धारणीय विकास के सहारे सुरक्षित करना है। हमारे देश में लगभग दस हजार करोड़ रुपए केवल सामाजिक समरसता को सुरक्षित रखने में प्रतिवर्ष खर्च हो रहे हैं, संघ का प्राथमिक तौर पर पहला प्रण यह है कि स्व-बोध का आत्मचिंतन कर अपने को समझें,और सामाजिक समरसता को पुनः कैसे स्थायी तौर पर स्थापित किया जाए साथ ही साथ स्वावलंबी भारत के निर्माण हेतु किस प्रकार स्वदेशी का आचरण हम अपने जीवन में अपनायें,इस पर कार्य करना है। अपने प्रधानमंत्री द्वारा जो ,मेड इन इंडिया की बात कही जा रही है वह स्वदेशी जीवन आचरण से ही प्राप्त होगी। टेरिफ के इस भयानक वार में संघ का यह स्वदेशी आचरण ही हमें पार लगा सकता है इन सबकी प्राप्ति के लिए संघ ने अपना जो अंतिम प्रण रखा है वह है ‘नागरिक कर्तव्य’ जिससे हम उक्त चारों परिवर्तनों को अमल में ला सकेंगे और आत्मसात करके विकसित भारत का लक्ष्य प्राप्त कर पाएंगे।
संघ को बहुत सारी आलोचनाओं का समय-समय पर शिकार होना पड़ा,परन्तु धैर्यपूर्वक व्यक्ति व्यक्ति को विंदु मानकर संघ सागर से महासागर बनता चला गया लगभग सवा सौ अनुसांगिक संगठनों के साथ आज दुनियां में कोई भी इतनी बड़ी स्वयंसेवी संस्था नहीं है।परमपूज्य हेडगेवार,और गुरुजी का सपना और संकल्प पूरा करने में संघ आज भी उतना ही गतिशील है,जितना पहले था।
इस शताब्दी वर्ष में हम राष्ट्रोत्थान हेतु अपने एवं अपने परिवारीजनों के साथ संघ की शाखाओं के माध्यम से अथवा संघ की नीतियों के माध्यम से एक पात्रता विकसित करें, वह पात्रता जो एक मानव को मानव बनाती है जिसमें स्वबोध और मानवीय भावनाओं को महत्व दिया जाता हो, जो व्यक्ति के मन-मस्तिष्क और व्यक्तित्व को इतना योग्य बना दे कि वह राष्ट्रसेवा की बलिवेदी पर सदा परीक्षा देने के लिए तैयार रहे। जीवन साधना का व्यावहारिक तत्व दर्शन संघ हमें देने के लिए अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है हम इसके माध्यम से अपने जाति-पांति उच्च-नीच के भेदभाव के कल्मष- कषाय को विगलित करके शांति-चित्त से राष्ट्र उन्नति के और मानव प्रसन्नता के प्रसून खिलाने के लिए इस शताब्दी वर्ष में तैयार रहें।’राष्ट्र प्रथम’ के सिंद्धांत के अनुपालन में हम सदा समर्पित भाव रखें तब जाकर पूज्य हेडगेवार,और गुरूजी द्वारा बनाई गई व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की यज्ञ वेदी में अपनी सेवा और समर्पण की आहुति डालकर ही अपनी गौरवमयी विश्व गुरु की विरासत को सुरक्षित रख सकते हैं।