माह अप्रैल, मई एवं जून 2024 मे मौनपालक क्या करे


जौनपुर – जिला उद्यान अधिकारी ने अवगत कराया है कि इन महीनों मे गर्मी अधिक बढ़ने के कारण मधुमक्खियों की गतिविधियों में शिथिलता आने लगती है, क्योंकि मौनों को पर्याप्त मात्रा में मकरन्द नहीं मिल पाता है। भोजन की कमी के कारण ब्रूड रियरिंग अर्थात् लगातार अण्डे देने की गति धीमी हो जाती है।

माह मई एवं जून में वायुमण्डल का तापक्रम बढ़ने के कारण मौनों का अधिक समय पानी लाने एवं मौनगृह का तापमान नियन्त्रित करने में लग जाता है। इस ऋतु (सीजन) में मौनवंशों को शक्तिशाली बनाये रखने तथा गर्मी से बचाय मौनालय प्रबन्धन हेतु निम्नलिखित सलाह दी जाती है


             मौनवंशों को लू से बचाने के लिए मौनगृहों को चारों ओर घास-फूस की टियों की बाड़ लगाने की व्यवस्था की जाये तथा मौनगृहों का प्रवेश द्वार उत्तर दिशा में रखा जाये। माइग्रेशन करते समय यह ध्यान रहे कि मौनवंशों को हमेशा ऊॅचे एवं छायादार स्थान पर रखा जाय ताकि तेज धूप एवं गर्मी तथा अचानक वर्षा के पानी के भराव से मौनवंशों को बचाया जा सके।

मौनगृह के ऊपर भीगा बोरा रखकर उसे सुबह एवं सायं गीला करते रहें जिससे मौनगृह के अन्दर का तापक्रम नियंत्रित रखा जा सकें। मौनवंशों को पानी देने के लिए मौनालय में जगह-जगह पर मिट्टी के बर्तन में स्वच्छ पानी भर कर रखें ताकि मौने आसानी से आवश्यकतानुसार पानी ले सकें, तथा समय-समय पर चीटी अवरोधक प्यालियों का पानी बदलते रहें।

मौनवंशों में प्रजनन की गति को सुचारू रूप से बनाये रखने हेतु मौनालय को लता वाली सब्जियों यथा- ककड़ी, खरबूजा, तरबूज, जामुन, कठ-जामुन, सूर्यमुखी, मक्का एवं बाजरा वाले क्षेत्रों में माइग्रेशन करने की व्यवस्था सुनिश्चित करें। इन महीनों में ब्रूड रियरिंग हेतु मौनों को उत्तेजित करने के लिए पराग की कमी में परागपूर्ति भोजन देने की व्यवस्था सुनिश्चित करें। आगामी मधुस्राव का लाभ लेने हेतु पुराने एवं खाली छत्तों को मौनगृह से निकाल कर पालीथीन बैग में सुरक्षित रख लें, ताकि अगले मधुनाव सीजन में इनका उपयोग हो सके।

भोजन के अभाव में 500 ग्राम चीनी प्रति मौनवंश प्रति सप्ताह की दर से 40 भाग चीनी एवं 60 भाग पानी में घोल बनाकर गर्म करके ठंडा होने पर सायंकाल मौनों को दिया जाये। चीनी की इस मात्रा को सप्ताह में दो बार बराबर-बराबर मात्रा में देने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।

मोमी पतिंगे एवं माइट से बचाव हेतु आवश्यकतानुसार सल्फर का प्रयोग साप्ताहिक अन्तराल पर किया जाना चाहिये। मौनवंशों का निरीक्षण आवश्यकतानुसार ही करें तथा निरीक्षण सदैव सुबह या सायंकाल ही किया जायें। मौनगृहों को सफेद रंग से पेन्ट कर मौनालयवार लाल रंग से मौनालय का नाम मौनवंश संख्या स्पष्ट रूप से अंकित की जाय, जिससे मौनवंशों के निरीक्षण में कठिनाई न हो।

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